चलो तुम्हें एक कथा सुनाऊँ,
नीरव मन का नाद सुनाऊँ।
आगाज़ है जिसका मन सागर मंथन
भूमिका बानी लहरों का गुंजन
ले सूर्य से तपिश
नव जीवन के निर्माण को मैंने दिया निमंत्रण ।
चलो तुम्हें …
जीवन को हिस्सों मैं बाँट बैठा था
आया था कहाँ से, जाना कहाँ
सब खो के भूल बैठा था।
रंगों से भरी इस दुनिआ को
व्यापार समझ सब गवां बैठा था॥
चलो तुम्हें …
दी पतवार जो गहराई को नाप ले
शब्दों में भर मिठास
उसने कहा, "कौन है तू, यह पहले जान ले" ।
चलो तुम्हें …
फैले ये पंख यूं उड़ते - उड़ते।
ले गहरी सांस, उठा के आँख
हुआ आसमां सीमित
मिटने लगा रंज गहरा, सबके साथ हँसते - हँसते॥
चलो तुम्हें …
मस्तिष्क की नसों को ढीला कर
मुस्कुराना, हाथ बढ़ाना
आँखों में दबी बात पढ़ना,चंद लम्हों को बाँट समेटना
गिरते का हाथ पकड़ना, खुद गिरकर उठ शान से चलना।
चलो तुम्हे …
सुबह हुई जब बीती वो रात घनी
ओंस बनी जो चंचलता थमी।
बच्चों ने जब हाथ पकड़ा
कुछ बोध हुआ और बात बनी ॥
चलो तुम्हें …
पर्वत भी अब झुक जायेंगे
निर्गुण कण विषाद में घुल जाएंगे
दृढ़ता छीन अब गूढ़ सागर से
अमर पथ पे अब चलते जाएंगे।
प्रेम, विनय और साहस के ले मशाल
हम कारवां मंज़िल तक ले जाएंगे ॥
चलो तुम्हें एक कथा सुनाऊँ
नीरव मन का नाद सुनाऊँ …
-- नीरव